समझौते हेतु कोमल चुम्बन
मेरे परम मित्र ने भी, जिस पर मैंने भरोसा रखा था, जो मेरी रोटी खाता था, उसने भी मेरे विरुद्ध लात उठाई है (भजन 41: 9)।
उस दिन वे दोनों पेड़ों के ऊपर मरने वाले थे। एक क्रूस पर लटका था; तो दूसरा एक डाल से लटका हुआ था। ऐसा प्रतीत होता है कि उनकी मित्रता तीन वर्षों तक रही थी। उन्होंने एक साथ भोजन किया, एक साथ हंसे, एक साथ राज्य का प्रचार किया, एक साथ दुष्टात्माओं को बाहर निकाला, एक साथ फरीसियों का सामना किया। स्वर्ग के राजा ने, अपने सिंहासन से नीचे उतर कर, इस व्यक्ति को बारह के अपने भीतरी समूह में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया था। इस व्यक्ति ने रात और दिन अपने सृष्टिकर्त्ता के साथ सहभागिता रखी थी।
और वे दोनों उस दिन पेड़ों पर मर गए। दोनों परमेश्वर द्वारा शापित थे: “जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह शापित है” (गलातियों 3:13)। एक के साथ तो धोखा हुआ था; किन्तु दूसरा तो विश्वासघाती था। उस कुत्सित योजना में एक चिरपरिचित मुँह सम्मिलित था।
चेलों के मध्य शैतान
शिमशोन के साथ दलीला और दाऊद के साथ अहीतोपेल के नमूने के अनुसार, भजन 41 में पाए गए दुरंगेपन के गीत को पूरा होना था: “जो मेरी रोटी खाता था, उसने भी मेरे विरुद्ध लात उठाई है” (यूहन्ना 13:18; भजन 41:9)। वह अनियंत्रित पशु अपने गुरू, अपने संरक्षक, अपने प्रभु के विरुद्ध लात मारेगा — जबकि अभी भी उसकी दाढ़ी पर राजा के भोज से रोटी के बचे हुए टुकड़े लगे हुए हैं।
वह अभी भी कड़वाहट से भरा हुआ था कि मरियम ने यीशु के पैरों पर बहूमूल्य इत्र उण्डेला था ( यूहन्ना 12:3-8) — उसके अनुसार इसके स्थान पर उस इत्र का दाम उसे दिया जाना चाहिए था जिससे कि वह बचे हुए धन को निर्धनों के बीच बाँटने से पहले उसमें से कुछ चुरा लेता — इसलिए वह यीशु के शत्रुओं के पास गया और उसको एक दास के मूल्य के नाई, अर्थात चांदी के तीस सिक्कों में बेच दिया, जैसा कि पहले ही भविष्यवाणी की गयी थी (जकर्याह 11:12; मत्ती 26: 14-16)। अगली संध्या, जैसा कि यीशु जानता था कि अन्ततः वह करैत प्रहार करेगा, यीशु अपनी आत्मा में व्याकुल था और उसने अन्तिम बार अपने शिष्यों से यह कहा, “तुम में से एक मुझे पकड़वाएगा” (यूहन्ना 13:21)। भजनकार उसकी उत्कंठा का वर्णन करते हुए कहता है,
जो मेरी बदनामी करता है वह मेरा शत्रु नहीं, अन्यथा मैं सह लेता, न वह मेरा बैरी है जो मेरे विरुद्ध डींग मारता है, अन्यथा मैं अपने आप को उस से छिपा लेता। परन्तु वह तो तू ही है, मेरी बराबरी का मनुष्य मेरा साथी और मेरा परम मित्र। (भजन 55:12-13)
हो सकता है कि हम शत्रु के गर्जनपूर्ण आक्रोश को सहन कर लें, परन्तु एक झूठे मित्र की शान्त घृणा को कौन सहन कर सकता है? एक साथी का खंजर हमारे प्राण की गहराई तक पहुँचता है। और ऐसे चापलूसी करने वाले अच्छी रीति से जानते है कि उन्हें कहाँ वार करना है — उनके सम्बन्ध केवल टोह लेने के उद्देश्य हेतु प्रमाणित होते हैं। यहूदा जानता था कि यीशु उस रात कहाँ होगा। उसने कहा, “मेरे पीछे आओ: मैं तुम्हें उसके पास ले जाऊंगा।” यीशु ने उसे देखकर कहा होगा,अरे तुम भी, यहूदा ?
हमें उसकी नीचता को उप्युक्त नाम देने के लिए भाषा के निचले स्तर तक गिरना पड़ेगा। स्वर्ग में पिता स्वर्गदूतों को उस दृश्य को देख कर भयाभिभूत होने, स्तब्ध होने और थरथराने के लिए बुलाता है (यिर्मयाह 2:12)। यीशु कहता है कि, “उस मनुष्य के लिए अच्छा होता यदि उसका जन्म ही न हुआ होता” (मरकुस 14:21)। उसका नाम ही है जो कि स्वर्ग का अभिशाप बन गया है: यहूदा इस्करियोती।
स्वच्छ पैर, मैला कार्य
उसके अन्तिम भोज के लिए मेज तैयार थी। विश्वासघात की रात आ पहुँची थी। यीशु ने उनसे तो सिद्ध प्रेम किया था और अभी भी “उन से अन्त तक वैसा ही प्रेम किया” (यूहन्ना 13:1)।
वह उठ खड़ा हुआ, यह जानते हुए कि मृत्यु उसे उसके पिता के पास वापस ले जाएगी, और अपनी कमर के चारों ओर एक तौलिया बाँध कर अपने शिष्यों के पैर धोने के लिए नीचे झुक गया (यूहन्ना 13:3-5)। वह मैला कार्य उसके स्वच्छ पैरों के द्वारा किया गया। यीशु तो पाखण्डी नहीं था: “मैं तुम सुनने वालों से कहता हूँ, अपने शत्रुओं से प्रेम करो, जो तुम से घृणा करते हैं उनकी भलाई करो” (लूका 6:27)।
क्या वह पहले से ही यह सब जानता था? हाँ वह जानता था। यीशु जानता था कि उसने किसे चुना है जब उसने पहली बार यहूदा को घास में रेंगते हुए देखा था: “क्या मैंने स्वयं तुम बारहों को नहीं चुना? पर फिर भी तुम में से एक शैतान है ” (यूहन्ना 6:70)। उस रात उसने कहा कि सब के सब पाप से शुद्ध नहीं किए जायेंगे, क्योंकि “मैं उनको जानता हूँ जिन्हें मैंने चुन लिया है” (यूहन्ना 13:18)।
उसकी अन्तिम भविष्यवाणी ने एक उद्देश्य की पूर्ति की: अर्थात यह पुष्टि की, कि अब भी — विशेष रूप से ऐसे समय में भी— वह ईश्वरीय “मैं हूँ” था (यूहन्ना 13:19)। वह एक ऐसे परमेश्वर का पुत्र था, जिसने ऐसी घटना को भी रचा है, अर्थात वह जो सबसे अन्धकारमय अध्याय है। यीशु भयभीत यहूदा के द्वारा मात नहीं खा गया — वह तो एक ऐसा मनुष्य था जिसके दुर्बल संकल्प को अपने पीड़ित द्वारा प्रोत्साहन की आवश्यकता थी जिससे कि अन्ततः वह अपनी बुराई को कार्यवन्त कर सके (यूहन्ना 13:27)। वह धोखा खाने के लिए आया। अदृश्य परमेश्वर के दृश्य मुख ने सर्प को अपना गाल चूमने के लिए दे दिया था।
भेड़ के वेश में
विश्वासघात के विषय में उसकी व्यथित आत्मा को अभिव्यक्त करने के पश्चात, यूहन्ना हमें व्यग्र करने वाला प्रतिउत्तर देता है। “चेले एक दूसरे को ताकने लगे क्योंकि समझ न सके कि वह किसके विषय में कह रहा है” (यूहन्ना 13:22)।
उन्होंने एक दूसरे पर दृष्टि डाली। यह अपराधी उनके बीच में कैसे बैठ सकता है? इस बात पर ध्यान देने के स्थान पर कि उनके मध्य में कौन सबसे महान है, उन्होंने अन्ततः इस तथ्य पर विचार किया कि किसी शैतान ने उनके मध्य में उनके साथ भोजन किया था, सोया था, और सेवा की थी। किसी ने भी यहूदा की ओर देखते हुए मुंह नहीं सिकोड़ा और न ही मन ही मन फुसफुसाया कि, मैं जानता था। किसी ने भी उसका कान काटने के लिए अपनी तलवार नहीं पकड़ी। इसके विपरीत, उन्होंने यीशु से एक-एक करके पूछा, “क्या वह मैं हूं?” (मरकुस 14:19)। प्रत्येक ने स्वयं में उतना ही अन्धकार देखा जितना कि उसने यहूदा में देखा था।
वह तो एक धर्मपरायण, सभ्य युवक प्रतीत होता था। उसने भी यीशु का अनुकरण करने के लिए सब कुछ छोड़ दिया था। उसने भी चिन्हों और आश्चर्यकर्मों को किया था। उसने भी अन्य शिष्यों का विश्वास प्राप्त किया था। उसने भी उपदेश सुना था, सामर्थ्य के कार्यों को देखा था, और जब समस्याएं आईं तो वह छोड़ कर चला नहीं गया था। उसने और अधिक सम्मान को प्राप्त किया होगा जब उसने गरीबों की देखभाल करने का दिखावा किया था (यूहन्ना 12:5-6 )। व्यापार में प्रतिभाशाली होने के नाते, उन्होंने उसे वित्त का कार्यभार सौंपा था। अन्धकार के इस सन्तान ने स्वयं को प्रकाश में छिपा लिया था।
पेड़ों पर दो मनुष्य
क्या यहूदा जानता था कि वह एक शैतान था? वह जानता था कि वह चोरी करता था, किन्तु, एक-आध सिक्के से क्या क्या होता है? उसने सोचा था, कि वह किसी को चोट तो नहीं पहुँचा रहा था। यद्यपि वह अवरोध विचित्र था जिसने उसके पाप के जीवन का अन्त किया था, किन्तु उसकी जीवन शैली विनाश के चिर परिचित पथ पर पहले से ही अग्रसर थी। यहूदा का मार्ग समझौते का मार्ग था।
और जब हम गुप्त पाप में जीवन व्यतीत करते हैं तो हम भी स्वयं को शैतान प्रमाणित करते हैं: “जो पाप करता है वह शैतान से है, क्योंकि शैतान आरम्भ से ही पाप करता आया है” (1 यूहन्ना 3:8)। क्या आप यहूदा के मार्ग पर चल रहे हैं? पेड़ पर झूलती हुई उसकी देह आपको स्मरण दिलाने पाए कि पाप और शैतान की बड़ी प्रतिज्ञाएं अंततः कहां ले जाती हैं।
यद्दपि उस दिन तो दो पुरुष पेड़ों पर मरे थे।
किन्तु उस दूसरे पुरुष की महिमा को निहारिए, जिसने अपने मित्रों के लिए अपना जीवन दे दिया। उसने अपने पिता के साथ योजना बनाई कि वह यहूदा की नाई बन कर दण्ड को अपने ऊपर ले जिससे कि वह लोगों को यहूदा के फन्दे से बचा सके। उसे देखिए जिसने स्वेच्छा से धोखा खाया, त्यागा गया, प्रताड़ित किया गया; अपने परमेश्वर के प्रकोप के अधीन दुख उठाकर शापित लोगों को अनन्त न्याय से बचा लिया। उसको देखिए विश्वासघातियों के ठोकर को ग्रहण करते हुए विश्वासघातियों को चंगा करने के लिए।
यदि हम उसके खो देंगे तो, हम तीस — या तीस हजार — चांदी के टुकड़े का क्या करेंगे? इस प्रकार के किसी भी प्रकार के तथा प्रत्येक ऐसे प्रस्ताव को ठुकरा दीजिए। पिता और उसके पुत्र को जानना ही अनन्त जीवन है जिसका नाम स्वर्ग की सुगन्ध बन गया है: अर्थात यीशु ख्रीष्ट। हमारा विद्रोह उसकी पीड़ा बन गयी थी ताकि उसके द्वारा उसकी महिमा हमारा कोष बन जाए।