“मुझे कुछ भी और अधिक अनिश्चित नहीं बनाता है कि मैं उसकी उपस्थिति में लम्बा समय व्यतीत करने के बाद भी अन्त तक स्थिर रहूंगा या नहीं।” महीनों बीत गए, वार्तालाप कई गुना बढ़ गई है, और अब अच्छे उद्देश्य भी मेरे मित्र को बनाए रखने के लिए पर्याप्त रूप से सबल नहीं थे।
उसके अनुसार, यह विशेष सज्जन व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के समान था जो निरन्तर अभियोग लगाने, कम सुनने, आक्रामक ढंग से आपस में मिलने, अभिमानपूर्वक प्राप्त करने, कभी-कभी मुस्कुराने, और असीमित रीति से गपशप करने में लगा रहता है (तब भी जब भोजन अभी भी उसके मुंह में आधा खाया हुआ था)। हृदय परिवर्तन से पूर्व ऑगस्तीन के समान जो मूर्खतापूर्ण अपराधों में आनन्द लेता था, वह एक साइकिल चालक था — इसलिए नहीं कि उसे व्यायाम करने में आनन्द आता था — परन्तु इसलिए क्योंकि वह सड़क के बीच में आराम से घूम रहा था, हॉर्न बजाने के द्वारा लोगों को तंग करता था, क्योंकि वह उनके अप्रसन्नता में आनन्दित होता था। वह एक दुष्ट प्रवृत्ति का व्यक्ति था।
मेरे मित्र ने उसकी संगति में आनन्द लेने का व्यर्थ प्रयास किया। परन्तु एक वर्ष बाद, वह अभी भी यीशु के शब्दों के द्वारा पवित्रता से विस्मित था, “मैं कब तक तुम्हारी सहूंगा?” (मरकुस 9:19)। यहाँ तक कि उसने प्रार्थना करना आरम्भ कर दिया, “प्रभु, आप उसे अपने वचन का पालन करने और शान्तिपूर्वक जीवन व्यतीत करने तथा अपने काम से काम रखने में उसकी सहायता कीजिए” (1 थिस्सलुनीकियों 4:11)। उसने इस बात पर विलाप किया कि उसका प्रेम इतना छोटा था कि वह केवल मुट्ठी भर दोषों को ही ढक सकता था।
मेरा मित्र इसे स्वीकार करना नहीं चाहता था, वह यह स्वीकार करते हुए अनुभव किया कि वह ख्रीष्टीय नहीं है — और वह यह जानता था कि परमेश्वर ने उस व्यक्ति को उसके जीवन में रखा है — किन्तु फिर भी वह उसे पसन्द नहीं करता था। उसने निरर्थक या दूसरों के आनन्द को कम करने वाले को पसन्द किया। उसने आश्चर्य किया कि कैसे वह इस व्यक्ति से प्रेम करने के लिए परमेश्वर की बुलाहट की आज्ञा का पालन कर सकता है, जिसके पास वह अब खड़ा नहीं हो सकता।
एक अप्रिय आज्ञा
यह स्वतः स्पष्ट है कि यीशु अपने लोगों को उन लोगों से प्रेम करने के लिए बुलाता है जिन्हें हम अप्रिय जानते हैं — कलीसिया के भीतर और कलीसिया के बाहर। जो प्रेम उसने हमें सिखाया है वह किसी प्राकृतिक मिलनसारिता या सामान्य अभिरुचियों पर आधारित नहीं है। हम आकारहीन बादलों को तिरछी दृष्टि से देखने के समान अपने पड़ोसियों को नहीं घूरते हैं, कि इससे पहले हम कुछ कार्य करें उनमें कुछ अच्छाइयां ढूंढने का प्रयास करते हैं। ये सभी बातें हमें इस बात की ओर ले जाती हैं कि पृथ्वी पर किसी के लिए हमारी चिन्ता करना हमारे प्रभु की आज्ञा है, “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम कर” (लूका 10:27)।
और दुखद रूप से, हमें यह चुनने को नहीं मिलता कि कौन अगले द्वार पर जाता है या कौन लहू से लथपथ सड़क के किनारे पड़ा है (लूका 10:25-37)। प्रेम के लिए परमेश्वर की अपेक्षाएं, वास्तव में, इसे आज्ञा देने की पूरी बात यह है कि हम इसे उन लोगों तक बढ़ा सकते हैं जिनको हम स्वाभाविक रीति से प्रेम नहीं करेंगे। यीशु यहाँ तक कि इससे बढ़कर हमें उन लोगों से प्रेम करने के लिए बुलाते हैं जिन्हें अप्रिय जानने का हमारे पास सबसे अधिक कारण है: हमारे शत्रु (लूका 6:35)।
जबकि अविश्वासी भी उनसे प्रेम करते हैं जो उन्हें बदले में प्रेम करते हैं — जबकि वे हास्यजनक, धनी, आकर्षक को आमंत्रित करते हैं — परमेश्वर अपने लोगों को उन लोगों से प्रेम करने के लिए बुलाते हैं जिनसे प्रेम करना कठिन है तथा जिसमें कोई पारस्परिकता की मांग नहीं की जाती है। परन्तु, मेरे मित्र के समान, हम वास्तविक प्रश्न पूछते हैं, कैसे ? यीशु और पौलुस हमें गुप्त में आने के लिए अनुमति देते हैं।
अपनी आशा का पूर्वाभ्यास करें
पौलुस ईश्वरीय विधि के विषय में बताता है जिसे कुलुस्से के विश्वासियों ने ढूंढ निकाला था:
हम तुम्हारे लिए सदैव प्रार्थना करते हुए अपने प्रभु यीशु ख्रीष्ट के पिता परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, क्योंकि हमने ख्रीष्ट यीशु में तुम्हारे विश्वास और सब पवित्र लोगों के प्रति तुम्हारे प्रेम के विषय में सुना है। यह उस आशा के कारण है जो तुम्हारे लिए स्वर्ग में रखी हुई है। (कुलुस्सियों 1:3-5)
कुलुस्सियों के विश्वासियों ने “सभी संतों” से प्रेम किया इसलिए नहीं कि “सभी संतों” से प्रेम करना सरल था। बाद में पौलुस कुलुस्सियों के इन्हीं विश्वासी को एक दूसरे की सहने तथा एक दूसरे के अपराध क्षमा करने के लिए बुलाता है (कुलुस्सियों 3:13)। पौलुस बादलों में नहीं रहा। वह जानता था कि तुमको कुछ लोगों की “सहना” पड़ेगा, और बहुतों को क्षमा भी करना पड़ेगा।
परन्तु ध्यान दें कि उन्होंने अन्य लोगों के लिए अपने कार्य को साफ करने, प्रेम के योग्य बनने, या ऐसे कार्य करने के लिए प्रतीक्षा नहीं की जो प्रेम करने करने को आसान बनाता है। नहीं, उनकी प्रेरणा अस्पर्शनीय थी। उन्होंने प्रेम किया उस आशा के कारण जो उनके लिए स्वर्ग में रखी हुई है।
अपात्र लोगों की सेवा करें
यीशु ने इस प्रकार से भी सिखाया। प्रेम करने हेतु विश्वासयोग्य लोगों के क्षेत्र से परे अपनी बुलाहट का विस्तार करते हुए, वह कहता है।
“अत: जब तुम बुरे होकर अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो तो तुम्हारा पिता जो स्वर्ग में है अपने मांगने वालों को अच्छी वस्तुएं और अधिक क्यों न देगा? इसलिए जैसा कि तुम चाहते हो कि मनुष्य तुम्हारे साथ करें, तुम भी उसके साथ वैसा ही करो, क्योंकि व्यवस्था और नबी यही सिखाते हैं” (मत्ती 7:11-12)।
पिता अपने बच्चों को अच्छी वस्तुएं देगा। इस बात में निश्चिन्त होकर — उसके अनन्त प्रावधान और निरन्तर देखभाल से आश्वस्त होकर, “क्योंकि स्वर्ग में तुम्हारे लिए रखी गई आशा के कारण” — दूसरों से प्रेम करें और उनके साथ भलाई करें। यह सुनहरा नियम हमारे पिता के अस्थायी और अनन्त प्रावधान में विश्वास की आग में गढ़ा गया है।
और यीशु ने जो प्रचार किया उसका अभ्यास किया। इस अत्यावश्यक सत्य पर ध्यान दीजिए जो हमारे प्रभु को नीचे उतरने और उन लोगों की सेवा करने के लिए प्रेरित करता है जो — कुछ ही घंटों के भीतर — सामूहिक रूप से विश्वासघात करेंगे, त्याग देंगे और उसे अपना नहीं मानेंगे:
और भोजन के समय जब शैतान पहिले ही से शमौन के पुत्र यहूदा इस्करियोती के मन में यह डाल चुका था कि वह उसे धोखे से पकड़वाए, तो यीशु यह जानते हुए कि पिता ने सब कुछ मेरे हाथों में दे दिया है और यह कि मैं परमेश्वर के पास से आया हूँ और परमेश्वर के पास वापस जा रहा हूँ, भोजन पर से उठा और अपने वस्त्र उतार कर एक तरफ रख दिए और तौलिया लेकर अपनी कमर बांधी। तब उसने एक बर्तन में पानी भरा और चेलों के पैर धोए तथा जिस तौलिए से उसने अपनी कमर बाँध रखी थी उस से उनके पैर पोंछने लगा (यूहन्ना 13:2-5)।
ऐसा नहीं है कि यीशु उठा और बिना इच्छाशक्ति के कार्य करना आरम्भ कर दिया। उनकी परोपकारिता ने उसे कार्य करने के लिए प्रेरित नहीं किया। खण्ड कहता है कि वह कुछ जानता था, उसने कुछ विचार किया, उसने एक सच्चाई को मन में रखा जिसने उसे झुकने के लिए और अपने शिष्यों के पैरों को धुलने के लिए तैयार किया था — ऐसा कार्य जिसने उसके आने वाले क्रूस की प्रत्याशा की थी (यूहन्ना 13:6-11)। वह जानता था कि सब कुछ उसी का है। वह जानता था कि वह अपने पिता का प्रिय है। उसने स्वर्ग में उसके लिए रखी गई आशा का पूर्वाभ्यास किया। अनन्त काल में उसकी आशा ने उसे आज प्रेम करने के लिए संसाधनों से भाव-विभोर कर दिया।
परमेश्वर अप्रिय लोगों की ओर अग्रसर हुआ
यीशु ने मात्र इस रीति से प्रचार या इस प्रकार सेवा ही नहीं की। उसने इस रीति से मरने के लिए अपनी कमर कस ली।
ऐसा नहींं है कि उसने हमारी ओर देखकर क्रूस पर मरने का चुनाव किया क्योंकि हम बहुत आकर्षक थे। उसने हमारे लिए क्रूस की ओर बढ़ने हेतु प्रेम का एक तनाव खोजने में संकोच नहीं किया। उसने स्वर्ग छोड़ दिया और एक लज्जाजनक, भयंकर, क्रूर मृत्यु मरने के लिए आया, हमारे पाप के लिए दण्ड का ईश्वरीय भार सहते हुए, जबकि हमने उसकी उपेक्षा की। जब हम अति अप्रिय थे, “कि जब हम पापी ही थे ख्रीष्ट हमारे लिए मरा” (रोमियों 5:8)। जबकि हमने उसे सम्मान नहीं दिया, उसने हमें सम्मानित किया। हमारी अप्रियता के कारण उसके हाथ छेदे गए, किन्तु उसका प्रेम अकारण बना रहा। “पिता, इन्हें क्षमा कर”, यह उसकी पुकार थी।
और यशायाह ने पहले से बता दिया था जो होने वाला था: अपनी आत्मा को कुचलने वाली पीड़ा के बीच, वह स्वयं को संतुष्ट करने और अंत तक अपने प्रेम को बनाए रखने के लिए कुछ देखेगा (यशायाह 53:11)। उसने क्या देखा?
(उसके) प्रेम ने स्वयं को कोड़ों, कीलों, क्रूस के पार देखा। उसने उपहास, हँसी, “उसे क्रूस पर चढ़ाओ” की पुकार के अलावा कुछ और सुना। उसने केवल विश्वासघात, अपमान, क्रोध से अधिक देखा। उसने अपने पिता के आनन्द के अनन्त हर्ष और अपने लोगों के अनन्त गंतव्य को क्रूस के पीछे की ओर देखा।
और आनन्द के लिए जो प्रतिफल, पुरस्कार उसके सामने रखा है, उसने अपना क्रूस उठा लिया (इब्रानियों 12:2), इसकी लज्जा को तुच्छ जाना, और उसने अपनों के लिए मृत्यु को जीत लिया। उसने उन्हें अपना प्रिय बनाने के लिए अप्रिय से परे देखा।
अपने तौलिये को लेना
हमारा प्रेम भी हमारे पड़ोसी के लिए स्वर्ग की प्रतिज्ञाओं की ओर देखता है और, उससे उत्साहित हमारे हृदय, देखभाल करने के लिए एक संकल्प के साथ उन्हें नये रूप में देखते हैं। हम उनके अतीत, उनके आसपास, उनसे ऊपर प्रेम नहीं करते हैं; हम उनसे प्रेम करते हैं — उनकी झुंझलाहट, विषमताओं, कमियों, अकृतज्ञताओं के बाद भी। हम प्रेम में होकर उन्हें दाम चुकाते हैं, इसलिए नहीं कि उन्होंने अर्जित किया है, परन्तु इसलिए कि या तो हमारे पास नहीं था और या फिर हम संसार के उत्तराधिकारी हैं।
उन लोगों के प्रति दया, त्याग और सम्मान देना जो हमें भुगतान नहीं कर सकते (या किसी भी कारण से, नहीं करेंगे), हमें दिवालिया नहीं करता है। हमारा पुरस्कार “अविनाशी, निष्कलंक और अमिट” है जो स्वर्ग में हमारे लिए सुरक्षित है (1 पतरस 1:4)। स्वर्गीय सोने से भरे हमारे मन के थैले और अविनाशी कोष से भरी हुईं हमारी छाती के साथ, हम चिड़चिड़े, तंग करने वाले, अधिकांशतः थकाऊ और अप्रिय लोगों के साथ समय व्यतीत करने के लिए पर्याप्त धनवान हैं।
यह जानते हुए कि हम परमेश्वर से जन्मे हैं, और उसके पास वापस जा रहे हैं, हम उठ सकते हैं, और अपनी कमर के चारों ओर एक तौलिया बांध सकते हैं, और दूसरों की सेवा करने के लिए नीचे झुक सकते हैं, अन्यथा हमारे लिए प्रेम करना असम्भव हो सकता है।