“मेरा अनुग्रह तेरे लिए पर्याप्त है, क्योंकि मेरा सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होता है।” (2 कुरिन्थियों 12:9)
क्लेश के लिए परमेश्वर का उद्देश्य यह है कि इसके द्वारा ख्रीष्ट के महत्व और सामर्थ्य की बड़ाई होनी चाहिए। यह अनुग्रह है, क्योंकि ख्रीष्टियों का सबसे बड़ा आनन्द यह है कि वे अपने जीवन में ख्रीष्ट को बढ़ते हुए अनुभव करें।
जब पौलुस को प्रभु यीशु के द्वारा यह बताया गया था कि उसकी “देह से काँटा” नहीं निकाला जाएगा, तो प्रभु ने इसका कारण बताते हुए पौलुस के विश्वास का समर्थन भी किया। प्रभु ने कहा “मेरा अनुग्रह तेरे लिए पर्याप्त है, क्योंकि मेरा सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होता है” (2 कुरिन्थियों 12:9)। परमेश्वर ने इस बात को ठहराया कि पौलुस निर्बल हो जिससे कि पौलुस की ओर से ख्रीष्ट को बलवन्त रूप में देखा जा सके।
यदि हम स्वयं में पर्याप्त दिखते हैं और स्वयं को पर्याप्त समझते हैं, तो ख्रीष्ट नहीं किन्तु हम महिमा प्राप्त करेंगे। इसलिए ख्रीष्ट संसार की निर्बल वस्तुओं को चुनता है “जिससे कि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करे” (1 कुरिन्थियों 1:29)। और कभी-कभी वह बलवान प्रतीत होने वाले लोगों को निर्बल बनाता है जिससे कि ईश्वरीय सामर्थ्य और अधिक स्पष्ट हो सके।
हम जानते हैं कि पौलुस ने इसको अनुग्रह के रूप में अनुभव किया क्योंकि वह इसमें आनन्दित हुआ था। “अतः मैं सहर्ष अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूँगा। जिससे कि ख्रीष्ट का सामर्थ्य मुझ में निवास करे। इस कारण मैं ख्रीष्ट के लिए निर्बलताओं, अपमानों, दुःखों, सतावों और कठिनाइयों में प्रसन्न हूँ, क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूँ तभी मैं सामर्थी होता हूँ” (2 कुरिन्थियों 12:9-10)।
परमेश्वर के अनुग्रह में विश्वास से जीने का अर्थ है कि यीशु में हमारे लिए परमेश्वर जो कुछ है उसमें सन्तुष्ट होना। इसलिए, विश्वास ऐसी किसी बात से पीछे नहीं हटेगा जो यीशु में हमारे लिए परमेश्वर है, उसको प्रकट और बड़ा करता है। हमारी स्वयं की निर्बलता और दुःखों का यही उद्देश्य है।