संयमी और सचेत रहो। तुम्हारा शत्रु शैतान गर्जने वाले सिंह की भाँति इस ताक में रहता है कि किसको फाड़ खाए। विश्वास में दृढ़ होकर उसका सामना करो। (1 पतरस 5:8-9)
पाप और शैतान हमारे प्राणों के दो महान् शत्रु हैं। और पाप तो सबसे बुरा शत्रु है क्योंकि एकमात्र साधन जिससे शैतान हमें नष्ट कर सकता है वह है हमें पाप में गिराकर, और हमें पश्चात्ताप करने से रोके रख कर। केवल क्षमा न किया गया पाप ही हमें नरक भेज सकता है। शैतान नहीं।
परमेश्वर हमें कष्ट देने के लिए शैतान को सीमित छूट दे सकता है, जैसा कि उसने अय्यूब के साथ किया था, या फिर यहाँ तक कि हमें मार डालने के लिए भी जैसा कि उसने स्मुरना के सन्तों के साथ किया था (प्रकाशितवाक्य 2:10); परन्तु शैतान हमें दोषी नहीं ठहरा सकता है और न ही हमारे अनन्त जीवन को चुरा सकता है। एक ही रीति से वह हमें अन्तिम हानि पहुँचा सकता है और वह है हमें पाप करने के लिए प्रभावित करने के द्वारा, तथा हमें पश्चात्ताप करने से रोके रखने के द्वारा। वास्तव में उसका लक्ष्य तो यही करने का है।
अतः, शैतान का मुख्य कार्य है पाप करने के प्रति हमारी प्रवृत्ति का समर्थन करना, बढ़ावा देना, सहायता करना, उत्साहित करना और पुष्टि करना है। और हमें विश्वास और पश्चात्ताप से दूर रखना।
हम इसको इफिसियों 2:1-2 में देखते हैं: “तुम तो अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे, जिनमें तुम पहले इस संसार की रीति और आकाश में शासन करने वाले अधिकारी . . . के अनुसार चलते थे।” पाप करना संसार में शैतान की शक्ति के “अनुरूप” है। जब वह नैतिक बुराई को लेकर आता है तो वह इसे पाप के माध्यम से करता है। जब हम पाप करते हैं तो हम उसके क्षेत्र में चले जाते हैं। हम उसके अनुरूप हो जाते हैं। जब हम पाप करते हैं तो हम शैतान को अवसर देते हैं (इफिसियों 4:27)।
न्याय के दिन एक ही बात है जो हमें दोषी ठहराएगी और वह है क्षमा न किया गया पाप — बीमारी या कष्ट या सताव या भय या भूत-प्रेत अथवा बुरे सपने हमें न्याय के दिन दोषी नहीं ठहराएँगे। इसलिए शैतान का मुख्य ध्यान प्राथमिक रूप से इस बात पर नहीं है कि विचित्र परिस्थितियों द्वारा कैसे ख्रीष्टीय लोगों को डराए, परन्तु इस बात पर है कि कैसे ख्रीष्टियों को थोड़े समय के महत्वहीन आकर्षण या बुरे विचारों द्वारा भ्रष्ट कर दे।
शैतान हम पर उस समय आक्रमण करना चाहता है जिस समय हमारा विश्वास दृढ़ न हो तथा उसको सरलता से चोट पहुँचाई जा सके। यह बात समझ में भी आती है कि उसी बात में शैतान हमको नाश करना चाहता है जो उसके प्रयासों को तिरस्कारने हेतु हमारा साधन है। इसीलिए पतरस कहता है “विश्वास में दृढ़ होकर, उसका सामना करो” (1 पतरस 5:9)। इसी कारण से पौलुस कहता है “विश्वास की ढाल लिए रहो जिस से तुम उस दुष्ट के समस्त अग्नि-बाणों को बुझा सको” (इफिसियों 6:16)।
शैतान को विफल करने का साधन यह है कि उस बात को और अधिक दृढ़ बनाएँ जिसको वह सबसे अधिक नाश करना चाहता है—अर्थात् अपने विश्वास को।