“मनुष्यों और पशुओं की बहुतायत के कारण यरूशलेम शहरपनाह-रहित नगरों के समान बसेगा क्योंकि यहोवा की यह वाणी है कि मैं स्वयं उसके चारों ओर अग्नि की दीवार तथा उसके मध्य महिमा ठहरूँगा।” (ज़कर्याह 2:4-5)
कभी-कभी ऐसी सुबह होती हैं जब मैं निर्बलता या असुरक्षा का आभास करते हुए जागता हूँ। यह आभास प्रायः अस्पष्ट होता है। कोई विशेष संकट नहीं दिखता है। और न ही कोई विशेष निर्बलता। केवल एक अस्पष्ट भावना उठती है कि कुछ तो बुरा होने वाला है जिसके लिए मैं उत्तरदायी होऊँगा।
यह सामान्य रीति से अत्यधिक आलोचना होने के पश्चात् होता है। या ऐसे समयों में जब अनेक अपेक्षाएँ होती हैं जिनके लिए समय सीमाएँ निर्धारित होती हैं और जो बहुत बड़ी तथा अधिक प्रतीत होती हैं।
जब मैं बीते 50 वर्षों के ऐसे प्रातःकालीन समयों को पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मैं आश्चर्यचकित होता हूँ कि कैसे प्रभु यीशु ने मेरे जीवन को बचाकर रखा है। और साथ ही मेरी सेवकाई को भी बचाकर रखा है। प्रभु की दया से अभी तक—तनाव से दूर भागने का प्रलोभन मुझ पर कभी प्रबल नहीं हुआ है – अभी तक तो नहीं। यह अद्भुत बात है। और इस बात के लिए मैं अपने महान् परमेश्वर की आराधना करता हूँ।
मुझे भय में डूब जाने देने, या हरी घास की मृगतृष्णा की ओर भागने देने के स्थान पर, उसने सहायता के लिए एक पुकार को जागृत किया और फिर एक ठोस प्रतिज्ञा के साथ उत्तर दिया।
मेरे पास एक उदाहरण है जो अभी थोड़े ही दिन पहले का है। मैं भावनात्मक रीति से निर्बलता का आभास करते हुआ उठा। बड़ा ही निर्बल और असुरक्षित। मैंने प्रार्थना की: “प्रभु मेरी सहायता कीजिए। मुझे यह भी नहीं पता है कि प्रार्थना कैसे करूँ।”
एक घण्टे के उपरांत मैं ज़कर्याह की पुस्तक को पढ़ रहा था, और मैं उस सहायता को खोज रहा था जिसके लिए मैंने पुकारा था। और सहायता मिली।
“मनुष्यों और पशुओं की बहुतायत के कारण यरूशलेम शहरपनाह-रहित नगरों के समान बसेगा क्योंकि यहोवा की यह वाणी है कि मैं स्वयं उसके चारों ओर अग्नि की दीवार तथा उसके मध्य महिमा ठहरूँगा।” (ज़कर्याह 2:4-5)
परमेश्वर के लोगों के लिए ऐसी समृद्धि और वृद्धि होगी कि यरूशलेम में अब समा भी नहीं पाएगी। “मनुष्यों और पशुओं की बहुतायत” इतनी होगी कि यरूशलेम उन बहुत से गाँवों के समान होगा जो पूरे देश में बिना नगरकोट (दीवार) के फैले हुए हैं।
समृद्धि होना अच्छी बात है, परन्तु सुरक्षा का क्या होगा?
इसके लिए परमेश्वर 5वें पद में कहता है, “यहोवा की यह वाणी है कि मैं स्वयं उसके चारों ओर अग्नि की दीवार ठहरूँगा।” हाँ। केवल इतना ही पर्याप्त है। यही प्रतिज्ञा है। परमेश्वर द्वारा कहा गया “मैं ठहरूँगा” कथन। इसी की तो मुझे आवश्यकता है।
और यदि यह यरूशलेम के असहाय गाँवों के लिए सत्य है, तो यह मेरे लिए अर्थात् परमेश्वर की सन्तान के लिए भी सत्य है। मैं इसी रीति से परमेश्वर के लोगों के लिए पुराने नियम की प्रतिज्ञाओं को लागू करता हूँ। ख्रीष्ट में सभी प्रतिज्ञाएँ मेरे लिए हाँ हैं। उन लोगों के लिए जो ख्रीष्ट में हैं, प्रत्येक प्रतिज्ञा के पश्चात् एक “इससे बढ़कर” कथन पाया जाता है। परमेश्वर मेरे चारों ओर “अग्नि की दीवार” ठहरेगा। हाँ। वह ठहरेगा। वह ठहरा रहा है। और वह आगे भी ठहरेगा।
और यह उत्तम होता जाता है। सुरक्षा की उस अग्नि की दीवार के भीतर वह कहता है, “और मैं उसके मध्य महिमा ठहरूँगा।” परमेश्वर कभी भी हमें अपनी अग्नि की सुरक्षा देने में सन्तुष्ट नहीं होता है; वह हमें अपनी उपस्थिति का सुख देगा। मैं परमेश्वर द्वारा कहे गए “मैं ठहरूँगा” कथनों से प्रेम करता हूँ!