ऐसा कभी नहीं हुआ कि इतने कम शब्दों ने मुझे कभी भयभीत किया।
स्वप्न में, मैं परमेश्वर के न्याय आसन के सामने एक बरामदे में बैठ गया। दो तेजस्वी प्राणी एक व्यक्ति को सिहांसन के सामने खींच लाये। वह भयभीत हो गया। जैसे ही सर्वशक्तिमान ने उस पर न्याय की घोषणा की, सभी लोग कांप उठे। जैसे ही शक्तिशाली प्राणी उस थरथराने वाले व्यक्ति को बाहर ले गए, मैंने उसका मुख देखा — वह मुख जिसे मैं अच्छी रीति से जानता था।
मैं इस व्यक्ति के साथ बड़ा हुआ हूँ। हम एक साथ खेल खेलते थे, एक साथ स्कूल जाते थे, इस जीवन में मित्र थे — फिर भी यहाँ वह मृत्यु में अकेला खड़ा था। उसने मुझे अवर्णनीय भय से देखा। जब वे उसे ले जा रहे थे, वह केवल कह सका — एक आवाज़ में, जिसे मैं नहीं भूल सकता — “तुम जानते थे?”
इन तीन कापंते हुए शब्दों में प्रश्न और आरोप दोनों थे।
हम जानते हैं
हाल ही के एक अध्ययन का विवरण है कि स्वयं को मसीही कहने वाले युवा आबादी में से लगभग आधे लोगों का यह मानना है कि विभिन्न विश्वासमत के घनिष्ट मित्रों और परिवार के सदस्यों के साथ अपने विश्वास को साझा करना गलत है। औसतन, इन युवा आबादी मसीहियों के पास चार घनिष्ट अविश्वासी प्रियजन — चार अनन्त आत्माएं — थी जो उनसे कभी सुसमाचार सुनने नहीं पायेंगी। कितना भयावह है। “फिर वे उसे क्यों पुकारेंगे जिस पर उन्होंने विश्वास ही नहीं किया? और वे उस पर कैसे विश्वास करेंगे जिसके विषय में उन्होंने सुना ही नहीं?” (रोमियों 10:14)। अविश्वसनीय रूप से, परमेश्वर के अधीन मनुष्यों की आत्माओं का अनन्तकाल, साथी मनुष्य की आवाज़ों के मध्यमों पर निर्भर करता है। आवाजें जो और अधिक नहीं बोलेंगी।
परन्तु हम सब शेष लोगों का क्या? हमारे जीवन में कितने लोग हैं — यदि वे आज रात परमेश्वर के सम्मुख खड़े हों — तो वे हमसे वही प्रश्न पूछ सकते हैं? हमने उनके साथ हज़ारों वार्तालाप किए हैं, उनकी उपस्थिति में अनगिनत घण्टे बिताए, हंसे, मुस्कुराए और उनके साथ रोए, हमने उन्हें “मित्र” कहने की अनुमति दी — और फिर भी — अपने सम्बन्ध को संकट में डालने के भय से पाप, अनन्तकाल, मसीह और नरक जैसे विषयों पर बात नहीं किया।
हम जानते हैं कि वे अपने अपराधों और पापों में मरे हुए हैं (इफिसियों 2:1-3)। हम जानते हैं कि हमारे प्रति उनके भले कार्य उन्हें बचा नहीं सकते (रोमियों 3:20)। हम जानते हैं कि वे ऐसे स्थान में बैठे हुए हैं जहाँ पहले से ही उन्हें दोषी ठहराया जा चुका है (यूहन्ना 3:18)। हम जानते हैं कि वे चौड़े मार्ग में भटक रहे हैं, और यदि रोके नहीं गए, तो वे सिर के बल नरक में गिर जाएंगे (मत्ती 25:46)। एक ऐसा स्थान जहाँ रोना और दांत पीसना होगा। एक बाहरी अन्धकार का स्थान। एक ऐसा स्थान जहाँ उनकी यातना का धुआँ सर्वशक्तिमान मेमने की उपस्थिति में युगानुयुग उठता रहेगा (प्रकाशितवाक्य 14:10-11)। “और वे बच न सकेंगे” (1 थिस्सलुनिकियों 5:3)। हम इस बात को जानते हैं।
हम कुछ नहीं कहते हैं
इससे भी बढ़कर — इससे और अधिक बढ़कर — हम जानते हैं कि कौन उन्हें बचा सकता है। हम मनुष्यों के मध्य में दिए गए एकमात्र नाम को जानते हैं जिसके द्वारा उन्हें बचाया जाना चाहिए (प्रेरितों के काम 4:12)। हम एकमात्र मार्ग, सत्य और जीवन को जानते हैं (यूहन्ना 14:6)। हम मनुष्य और परमेश्वर के बीच में एकमात्र मध्यस्थ को जानते हैं (1 तीमुथियुस 2:5)। हम परमेश्वर के मेमने को जानते हैं जो पापों को उठा ले जाता है। हम उद्धार के लिए सुसमाचार की सामर्थ्य को जानते हैं। हम जानते हैं कि हमारे परमेश्वर का हृदय बचाने में आनन्दित होता है, और दुष्ट की मृत्यु से प्रसन्न नहीं होता (यहेजकेल 33:11)। हम जानते हैं कि यीशु की प्रायश्चितिय मृत्यु ने मेल-मिलाप का एक मार्ग बनाया है, कि वह एक भ्रष्ट व्यक्ति को धार्मिकता से क्षमा कर सके। हम जानते हैं कि वह अपनी आत्मा को नया जीवन, नया आनन्द, नया उद्देश्य देने के लिए भेजता है। हम जानते हैं कि जीवन का लक्ष्य परमेश्वर से मेल-मिलाप करना है। हम जानते हैं।
परन्तु फिर, हम क्यों केवल मुस्कुराते हैं और उन पर हाथ हिलाते हैं — अपने प्रियजनों, परिवार, मित्रों, सहकर्मियों और अजनबियों पर — जबकि वे परमेश्वर के रोष के सामने बिनाढाल खड़े होने की तैयारी करते हैं? हम उनसे संकट के बारे में, उनसे परमेश्वर के बारे में, या उसके बच्चे बनने के अवसर के बारे में क्या कहते हैं जबकि वे मृतक के रूप में न्याय की नदी में नीचे की ओर डूबते जा रहे हैं? प्रायः, हम कुछ भी नहीं कहते हैं।
कैसे ख्रीष्टीय (मसीही) आत्माओं की हत्या करते हैं
मैं उस सपने से जाग गया, जैसा कि स्क्रूज ने ए क्रिसमस कैरोल नामक चलचित्र में किया था, इस बात का आभास करते हुए कि मेरे पास अभी और समय है। मैं अपने मित्र (और अन्य लोगों) को चेतावनी दे सकता था और उसे क्रूसित मसीह के बारे में बता सकता था। मैं उस कूटनीति से दूर रह सकता था जो सम्पूर्ण इतिहास में यीशु या उसके प्रेरितों या सन्तों से बहुत कम मेल खाती थी, जहाँ तक वे उसकी सहायता कर सकते थे, उन्होंने सुनने से इनकार कर दिया, “तुम्हें पता था?” मैं मानवीय छाया के भय से शैतान की सहायता करना बन्द कर सकता था। मेरे मित्र को चुपचाप निर्णय लेने की/न्याय में फिसलने की आवश्यकता नहीं है।
और मेरे मौन को उसकी कब्र खोदने में सहायता करने की आवश्यकता नहीं है। मैं उसे कुछ रीति से उस दोष से बच सकता था जिसके विषय में स्पर्जन ने बात की, जब उसने सम्पूर्ण सत्य बताने के प्रति एक सेवक की अनिच्छा को “आत्मा की हत्या” कहा।
अरे, अरे, महोदय सर्जन, आप उस व्यक्ति को यह बताने के लिए अत्याधिक शिष्टाचारात्मक हैं कि वह बीमार है! आप बीमार को उनके जाने बिना चंगा करने की आशा करते हैं। इसलिए आप उनकी चापलूसी करते हैं। और क्या होता है? वे आप पर हंसते हैं। वे अपनी कब्रों पर नृत्य करते हैं और अन्त में वे मर जाते हैं। आपकी शिष्टाचारिता क्रूरता है; आपकी चापलूसी जहर है; आप हत्यारे हो । क्या हम मनुष्यों को मूर्खता के स्वर्ग में रखेंगे? क्या हम उन्हें शान्त निद्रा में सुला दें ताकि वे नरक में जाग उठें। क्या हम अपनी कोमल बातों के द्वारा उनके नरकदण्ड के सहायक बन जाएं? परमेश्वर के नाम में, हम ऐसा नहीं करेंगे।
परमेश्वर ने यहेजकेल से ऐसा ही कहा। “जब मैं दुष्ट से कहूं, ‘तू निश्चय मरेगा, और तू उसे चेतावनी न दे या उस दुष्ट को उसकी दुष्टता से सचेत करने के लिए उस से न कहे, जिस से वह जीवित रहे, तो वह दुष्ट तो अपने अधर्म में मरेगा ही, परन्तु उसके खून का लेखा मैं तुझी से लूंगा” (यहेजकेल 3:18)। पौलुस, केवल विश्वास द्वारा धर्मी ठहराने वाले विचार के वीर प्रेरित, ने मौन के दोषपन पर कुछ ऐसे बात की: “आज के दिन मैं तुम्हारे समक्ष गवाही देकर कहता हूं, कि मैं सब लोगों के लहू से निर्दोष हूं, क्योंकि मैं परमेश्वर की सम्पूर्ण इच्छा को तुम्हें बताने से न झिझका” (प्रेरितों के काम 20:26-27)।
क्या मैं एक सह-अपराधी हूँ?
हम लोगों को उनके जीवन बचाने के लिए चेतावनी देते हैं। पौलुस ने अपने सुन्दर पैरों को डरपोक जीभ से धोखा नहीं खाने दिया। उसने लोगों को चेतावनी दी जब वह धार्मिकता, संयम और आनेवाले न्याय की चर्चा कर रहा था” (प्रेरितों के काम 24:25)। लोगों को प्रसन्न करने के भय ने उसे नियंत्रित नहीं किया — ऐसा न हो कि वह स्वयं को मसीह का दास होने से अयोग्य ठहराए (गलातियों 1:10)।
अब आज हम पहली वाचा के भविष्यद्वक्ता या नई वाचा के प्रेरित नहीं हैं। हम में से बहुत लोग पास्टर और शिक्षक भी नहीं है, जो “और भी कठोरतम दण्ड के भागी होंगे” (याकूब 3:1)। परन्तु क्या इसका अर्थ यह है कि हममें से शेष लोग किसी कठोरतम दण्ड के भागी नहीं होंगे? क्या हमारे पास्टर और शिक्षक “सेवा-कार्य के लिए” हमें प्रशिक्षित नहीं करते हैं (इफिसियों 4:11-12)? क्या मुझे दूसरों को कलीसिया में केवल आमंत्रित करके अपनी अन्तरात्मा को शान्त कर लेना चाहिए, इस आशा में कि एक दिन वे अन्दर आएं और आकर वहां सुसमाचार सुनें?
मेरे पासबान मेरे लोगों के साथ बड़े नहीं हुए, न ही बगल में रहते थे, न ही बार-बार उन्हें सन्देश (मैसेज) भेजते थे, न ही उनके साथ फुटबॉल खेल देखते थे, और न ही उनके साथ उनके घरों में बैठते थे। परन्तु मैंने ये किया । और जितना अधिक हममें से कुछ लोग “साधक-संचालित” कलीसियाओं की आलोचना करते हैं, यह प्रश्न असहज रूप से, घूमकर वापस आता है: क्या मैं आत्मओं को जीतने के लिए कठोर सत्य कहने से पीछे हटता हूँ? क्या मेरी शिष्टाचारिता क्रूरता है? मेरी चापलूसी विष है? क्या मैं आत्माओं की हत्या में सह-अपराधी हूँ?
यदि आप नहीं, तो कौन?
हाल ही में, एक परिवार जिसकी हमने देखभाल की लगभग मरने पर था। वे बिना यह जानते हुए बिस्तर पर गए कि कार्बन मोनोऑक्साइड घर में भरना आरम्भ हो जाएगी। वे पृथ्वी पर सो गए होते और परमेश्वर के सम्मुख जगे होते यदि उन्हें अप्रिय ध्वनि ने अप्रिय सन्देश के साथ चौंकाया न होता। हम, कार्बन संसूचक के समान हैं, हम चुप नहीं बैठ सकते हैं कि खोई हुई आत्माओं को नरक में जाने दें। यदि वे अविश्वास में बने रहें, तो उन्हें हमें मुक्का दिखाने दीजिए, उनके कानों के ऊपर से तकिए खींचिए, उन्हें लुढ़काइए, और उनकी पीठ अपनी ओर कीजिए, और सिंहासन के सम्मुख जगाइये।
यदि हम अविश्वासयोग्य रहे हैं — जहाँ लोगों को प्रसन्न करने वाला और उदासीनता का हमारा पाप बहुत अधिक बढ़ा — काश, अनुग्रह और भी अधिक बढ़े। पश्चात्ताप करो, जागो, और फिर पाप मत करना। अपने साहस को बढ़ाओ और पॉल रेवर के समान अपने अधिकार क्षेत्र में जाओ, उन्हें यह बताने के लिए कि परमेश्वर आ रहा है। जब बोलने का समय आए, तो उन्हें बताएं कि वे धर्मी न्याय के अधीन खड़े हैं। उन्हें बताएं कि उन्हें अवश्य पश्चात्ताप और विश्वास करना चाहिए। उन्हें बताए कि यीशु पहले एक बार आ चुके हैं। उन्हें बताएं कि उसने पापियों के लिए परमेश्वर के प्रकोप को अपने ऊपर ले लिया। उन्हें बताएं कि वह मृतकों में जी उठा है। उन्हें बताएं कि वह पिता के दाहिने हाथ पर विराजमान होकर राज्यों पर शासन करता है। उन्हें बताएं कि विश्वास के द्वारा, वे जीवित रह सकते हैं। उन्हें बताएं कि वे परमेश्वर की सन्तान बन सकते हैं।
यदि हम, एक चुना हुआ वंश, एक राजकीय याजक, एक पवित्र प्रजा हैं जो हृदय परिवर्तन के बाद उसकी महानता की घोषणा करने के लिए ठहराए गए हैं (1 पतरस 2:9) उन्हें उनके प्राणघातक सपने से नहीं जगाएंगे, तो कौन जगाएगा? परमेश्वर, हमें उन अति पीड़ा देने वाले शब्दों को सुनने से बचाइये “तुम जानते थे”?